झारखण्ड के राज्यपाल
भारत का संविधान संघात्मक है। इसमें संघ तथा राज्यों के शासन का प्रावधान किया गया है। संविधान के भाग 6 में राज्य शासन का प्रावधान है। राज्य की भी शासन पद्धति संसदीय है। राज्यपाल की नियुक्ति राज्यों में होती है।
राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्ववद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं। इनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केन्द्र में राषट्रपति की होती है। केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल होते हैं।
7 वे संशोधन 1956 के तहत एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यो के लिए भी नियुक्त किए जा सकत हैं।
* परिचय-
राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख होता है। वह मंत्री परिषद् की सलाह पर काम करता है परन्तु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्री पद की तुलना में बहुत सुरक्षित है। वह राष्ट्रपति के तरह असहाय नहीं है। राष्ट्रपति के पास केवल विवेकाधीन शक्ति है जिसका हमेशा इस्तेमाल करता है। किन्तु संविधान राज्यपाल को प्रभाव व शक्ति दोनों देता है। राज्यपाल का पद जितना शोभात्मक है, उतना ही कार्यात्मक भी है।
अनुच्छेद 166(2) के अन्तर्गत यदि कोई प्रश्न उठता है कि राज्यपाल की शक्ति विवेकाधीन है या नहीं तो उसी का निर्णय अंतिम होता है।
अनुच्छेद 166(3) राज्यपाल इन शक्तियों का प्रयोग उन नियमों के निर्माण हेतु कर सकता है जिनसे रज्यकार्यों को सुगमता पूर्वक संचालन हो साथ ही वह मंत्रियों में कार्य विभाजित भी कर सकता है।
अनुच्छेद 200 के अधीन राज्यपाल अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग राज्य विधायिका द्वारा पारित बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकने में कर सकता है।
अनुच्छेद 356 के अधीन राज्यपाल राष्ट्रपति को राज के प्रशासन को अधिग्रहित करने हेतु निमंत्रण दे सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकता हो।
अनुच्छेद 157 के अनुसार राज्यपाल पद पर नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताओं का होना अनिवार्य है--
1. वह भारत का नागरिक हो,
2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
3. वह राज्य सरकार या केन्द्र सरकार या इन राज्यों के नियंत्रण के अधीन किसी सार्वजनिक उपक्रम में लाभ के पद पर न हो,
4. वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो।
राज्यपाल की नियुक्ति
संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाएगी, किन्तु वास्तव में राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री की सिफारिश पर की जाती है।
राज्यपाल की नियुक्ति के सम्बन्ध में निम्न दो प्रकार की प्रथाएं बन गई थी -
1. किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं नियुक्ति किया जाएगा, जिस राज्य का वह निवासी है
2. राज्यपाल की नियुक्ति से पहले सम्बंधित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जाएगा।
यह प्रथा 1950 से 1967 तक अपनाया गया, लेकिन 1967 के चुनावों में जब कुछ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ, तब दूसरी प्रथा को समाप्त कर दिया गया और मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किए बिना राज्यपाल की नियुक्ति की जाने लगी।
राज्यपाल की कार्य अवधि
राज्यपाल राज्य में केन्द्र की प्रतिनिधि होता है तथा राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यांत पद पर बना रहता है। वह कभी भी पद से हटाया जा सकता है।
यद्यपि राज्यपाल की कार्य अवधि उसके पद ग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष तक होती है, लेकिन इस पाँच वर्ष की अवधि के समापन के बाद वह तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद नहीं ग्रहण कर लेता। जब राज्यपाल पाँच वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद पद पर रहता है, तब वह प्रतिदिन के वेतन के आधार पर पद पर बना रहता है। राज्य पाल विश्विविद्यालयो का कुलपति भी होता है।
झारखण्ड के राज्यपाल की सूची निम्न प्रकार से है उनके कार्य अवधि के अनुसार-
1. श्री प्रभात कुमार = 15/11/2000 -03/02/2002
2. श्री विनोद चन्द्र पांडेय = 04/02/2002-14/07/2002
(अतिरिक्त प्रभार)
3. श्री एम. आर. जोईस =15/07/2002-11/06/2003
4. श्री वेद मारवाह =12/06/2003-09/12/2004
5. सैय्यद सिब्ते रजी =10/12/2004-25/07/2009
6. श्री के. शंकरनारायण =26/07/2009-21/01/2010
7. एम. ओ. हसन फारुख। =22/01/2010-03/09/2011
मारिकार
8. सैयद अहमद =04/09/2011-17-05-2014
9. द्रौपदी मुर्मू =18/05/2014- वर्तमान
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राज्यपाल अपने राज्य के सभी विश्ववद्यालयों के कुलाधिपति भी होते हैं। इनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केन्द्र में राषट्रपति की होती है। केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल होते हैं।
7 वे संशोधन 1956 के तहत एक राज्यपाल एक से अधिक राज्यो के लिए भी नियुक्त किए जा सकत हैं।
* परिचय-
राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख होता है। वह मंत्री परिषद् की सलाह पर काम करता है परन्तु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्री पद की तुलना में बहुत सुरक्षित है। वह राष्ट्रपति के तरह असहाय नहीं है। राष्ट्रपति के पास केवल विवेकाधीन शक्ति है जिसका हमेशा इस्तेमाल करता है। किन्तु संविधान राज्यपाल को प्रभाव व शक्ति दोनों देता है। राज्यपाल का पद जितना शोभात्मक है, उतना ही कार्यात्मक भी है।
अनुच्छेद 166(2) के अन्तर्गत यदि कोई प्रश्न उठता है कि राज्यपाल की शक्ति विवेकाधीन है या नहीं तो उसी का निर्णय अंतिम होता है।
अनुच्छेद 166(3) राज्यपाल इन शक्तियों का प्रयोग उन नियमों के निर्माण हेतु कर सकता है जिनसे रज्यकार्यों को सुगमता पूर्वक संचालन हो साथ ही वह मंत्रियों में कार्य विभाजित भी कर सकता है।
अनुच्छेद 200 के अधीन राज्यपाल अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग राज्य विधायिका द्वारा पारित बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति हेतु सुरक्षित रख सकने में कर सकता है।
अनुच्छेद 356 के अधीन राज्यपाल राष्ट्रपति को राज के प्रशासन को अधिग्रहित करने हेतु निमंत्रण दे सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकता हो।
अनुच्छेद 157 के अनुसार राज्यपाल पद पर नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताओं का होना अनिवार्य है--
1. वह भारत का नागरिक हो,
2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
3. वह राज्य सरकार या केन्द्र सरकार या इन राज्यों के नियंत्रण के अधीन किसी सार्वजनिक उपक्रम में लाभ के पद पर न हो,
4. वह राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने के योग्य हो।
राज्यपाल की नियुक्ति
संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाएगी, किन्तु वास्तव में राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा प्रधानमंत्री की सिफारिश पर की जाती है।
राज्यपाल की नियुक्ति के सम्बन्ध में निम्न दो प्रकार की प्रथाएं बन गई थी -
1. किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं नियुक्ति किया जाएगा, जिस राज्य का वह निवासी है
2. राज्यपाल की नियुक्ति से पहले सम्बंधित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जाएगा।
यह प्रथा 1950 से 1967 तक अपनाया गया, लेकिन 1967 के चुनावों में जब कुछ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ, तब दूसरी प्रथा को समाप्त कर दिया गया और मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किए बिना राज्यपाल की नियुक्ति की जाने लगी।
राज्यपाल की कार्य अवधि
राज्यपाल राज्य में केन्द्र की प्रतिनिधि होता है तथा राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यांत पद पर बना रहता है। वह कभी भी पद से हटाया जा सकता है।
यद्यपि राज्यपाल की कार्य अवधि उसके पद ग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष तक होती है, लेकिन इस पाँच वर्ष की अवधि के समापन के बाद वह तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद नहीं ग्रहण कर लेता। जब राज्यपाल पाँच वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद पद पर रहता है, तब वह प्रतिदिन के वेतन के आधार पर पद पर बना रहता है। राज्य पाल विश्विविद्यालयो का कुलपति भी होता है।
झारखण्ड के राज्यपाल की सूची निम्न प्रकार से है उनके कार्य अवधि के अनुसार-
1. श्री प्रभात कुमार = 15/11/2000 -03/02/2002
2. श्री विनोद चन्द्र पांडेय = 04/02/2002-14/07/2002
(अतिरिक्त प्रभार)
3. श्री एम. आर. जोईस =15/07/2002-11/06/2003
4. श्री वेद मारवाह =12/06/2003-09/12/2004
5. सैय्यद सिब्ते रजी =10/12/2004-25/07/2009
6. श्री के. शंकरनारायण =26/07/2009-21/01/2010
7. एम. ओ. हसन फारुख। =22/01/2010-03/09/2011
मारिकार
8. सैयद अहमद =04/09/2011-17-05-2014
9. द्रौपदी मुर्मू =18/05/2014- वर्तमान
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पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद
bhut sahi
जवाब देंहटाएंThanks bhai
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